पथ के साथी

Saturday, June 14, 2014

पितृ चरणों में



1-श्रद्धांजलि .........पितृ चरणों में ...
          डॉ० ज्योत्स्ना शर्मा
                           " सुधियाँ भी पावन हुईं ,मन सुरभित सुख धाम
                         पितृ-चरण करूँ वन्दना ,सहज ,सरल ,निष्काम
।। "
       शब्द ब्रह्म हैं ...और ..अक्षर कभी क्षरित नहीं होते ....विचरण करते हैं ,पहुँच ही जाते हैं गंतव्य तक ..कभी न कभी
इसीलि कहती हूँ यहाँ ..पापा जी आपसे ..यूँ तो आपको बहुत याद करती हूँ  ;लेकिन आज बताना भी है कि कितना और कैसे ? हर रूप में ...खाना बनाना सिखाते ,अंग्रेजी और गणित पढ़ाते ,अपने लेख लिखवाते ,साहित्य ,राजनीति ,घर और सामाजिक सरोकारों पर चर्चा करते आप ही आप दिखते हैं
               कवि कालिदास ,महादेवी जी ,प्रसाद जी और दुष्यंत कुमार हों या स्वामी विवेकानंद , स्वामी दयानंद सरस्वती  या फिर सुभाष चंद्र बोस, सभी को मैंने आपकी नज़रों से ही तो देखा है
मेरे स्कूल से कॉलेज और फिर कार्य- क्षेत्र तक मेरी हर सफलता पर खुश होते और हर असफलता पर हिम्मत बढ़ाते ,मेरी विदाई पर गले लगा कर रोते और नए घर में प्रवेश पर आशिष बरसाते ,आप मेरी दृष्टि से नहीं जाते
कौन कहता है आप नहीं हैं ..?आप मेरे साथ हैं ..मेरे विचारों में ,मेरे सिद्धांतों में ,मेरी आदतों और मेरी उन सभी पुस्तकों में जो मुझे आपसे मिलीं
अपनी हर सफलता और सुख यहाँ तक कि स्वयं के व्यक्तित्व में आपको देखती हूँ ..इसी से जानती हूँ कि मैं न भी कहती तो भी आप जान लेते कि मैं क्या सोचती हूँ ....क्योंकि ...मैं हूँ न आपकी ..आत्मजा

कुछ पंक्तियाँ आपकी स्मृति में ...


जीवन-दर्शन हैं पिता , चिंतन का आधार

नित-नित नयनों में रचा ,स्वप्नों का संसार
।।

छाया शुभ आशिष रहे , कभी कड़ी सी धूप

विपत हरें ,नित हित करें ,पिता परम प्रभु रूप
।।



माँ तो शीतल छाँव सी ,पिता मूल आधार

सुन्दर सुखी समाज का संबल है परिवार ।।


फूल कली से कह गए ,रखना इतना मान

बिन देखे होती रहे , खुशबू से पहचान
।।

शीश चुनरिया सीख की , मन में मधुरिम गीत

बाबुल तेरी लाडली  , कभी न भूले रीत
।।



अब मिलना मुमकिन नहीं ,मन को लूँ समझाय

बिटिया हूँ , कैसे भला , याद न मुझको आय ।।

आप की सुन्दर स्मृतियों  को सदा मन में संजोये ...सादर ..
आपकी आत्मजा ......
ज्योत्स्ना
28-10-12
-0-्योत् ,GUJRAT .396191


2-संस्मरण: पिता जी का प्यार
          सविता अग्रवाल "सवि "

   पौ फटते ही चिड़ियों की चहचहाट शुरू हो गई | मेरी खिड़की के एक कोने में चिड़िया ने अपना घोंसला बना रखा था | छोटे छोटे  बच्चे चूं चूं कर रहे थे | थोड़ी देर में मैंने देखा कि एक चिड़ा कहीं से उड़ कर आया और कुछ देर के लिए चूं चूं की आवाज़ बंद हो गई लगा जैसे बच्चों को खाना मिल गया हो और वे शांत हो गए थे | मेरे मस्तिष्क में कई दशक पुरानी एक घटना घूम गई ..जब मैं लगभग सात या आठ वर्ष की थी | एक बार अपनी दादी के साथ उनके मायके में किसी लड़की की शादी में गई थी | विवाह के उत्सव में बहुत से सगे संबंधी आये हुए थे | दादी ने मुझे भी सब से मिलवाया | मेरे साथ की एक लड़की मिल गई बस मैंने उसके साथ दोस्ती कर ली उसका नाम इंदु था | विवाह में अनेकों रीति रिवाज़ हो रहे थे हम दोनों को तो अपने खेलने में ही आनंद आ रहा था | सभी आपस में हंसी मज़ाक करते इधर से उधर घूम रहे थे | हर घंटे कुछ न कुछ खाने के लिए आ जाता था | मेहमानों का तांता लगा था |
  घर के बाहर कच्ची सड़क पर पानी का छिड़काव हो रहा था उस मिट्टी की सौंधी सौंधी खुशबू से मन प्रसन्न हो रहा था | कुछ बुज़ुर्ग घर के बाहर कुर्सियां डाल कर बैठ गए और बातें कर रहे थे | कोई किसी की लड़की बड़ी हो गई है उसके लिए लड़का ढूँढने की बात करता तो कोई लड़के के लिए कोई लड़की बताओ कहता दिखाई दे रहा था | बीच बीच में कभी कभी हंसी का ज़ोरदार ठहाका लग जाता था | पूरी गली को रंग बिरंगी झंडियों से सजाया गया था |
   धीरे धीरे शाम हुई और बारात आने की तैयारी शुरू हो गई | एक कमरे में लड़की जिसका नाम सुमन था, दुल्हन बनी बैठी थी | तभी बारात के बैंड बाजे की आवाज़ें आने लगीं | मैं और इंदु भाग कर बाहर गए और बारात का इंतज़ार करने लगे | "बारात आ गई, बारात आ गई" कहते सभी खुश थे | दुल्हे की आरती उतारी गई | जयमाला का कार्यक्रम हुआ | सभी मिठाइयों का आनंद ले रहे थे | फेरों का समय आते आते मैं सो गई | सुमन जिसे मैं बुआ जी कहती थी उसकी विदाई सुबह को होनी थी | सुबह होते ही मैंने देखा कि कुछ बच्चे सुमन के साथ उनके ससुराल जाने की तैय्यारी में लगे थे | मेरे साथ खेलने वाली इंदु भी तैयार हो गई थी, क्योंकि अगले दिन सभी बच्चे सुमन के साथ वापिस आनेवाले थे | मैंने भी सुमन बुआ के साथ जाने की ज़िद्द की | दादी के बहुत मना करने पर भी मैं नहीं मानी और रोने लगी | तब सभी ने कहा कि ठीक है इसे भी भेज दो और मैं भी साथ चली गई |
  सुमन की ससुराल में उसकी सास ने सबकी खूब खातिर की | हम सभी ने पकवानों का जी भर आनंद उठाया | अगले दिन सुमन की सास ने सुमन के साथ उसके घरवालों के लिए बहुत सा सामान दिया जिसमें इंदु के लिए एक गुड़िया और मेरे लिए कोई और खिलौना भी दिया | परन्तु मुझे तो इंदु की गुड़िया ही पसंद आयी और मैं रोने लगी | तब कुछ लोगों ने समझाया कि घर जाकर ले लेना | बस मैं घर पहुँचने का इंतज़ार करने लगी | किसी तरह घर पहुंचे तो मैंने अपनी दादी से कहा कि मुझे तो वह गुड़िया ही चाहिए | इंदु भी अपनी ज़िद्द पर अटल थी कि यह गुड़िया तो मेरी है मैं नहीं दूंगी | दादी ने बहुत समझाया और किसी तरह मुझे अनेकों लालच देकर वापिस घर ले आयी और मेरे पिताजी से कहा कि यह गुड़िया के लिए बहुत रो रही थी | घर आकर भी मैंने गुड़िया की ज़िद्द नहीं छोड़ी | क़रीब चार दिन बाद मैंने देखा कि पिताजी अपने हाथ में कुछ लेकर आये हैं और उन्होंने मुझे एक कमरे में बुलाकर कहा कि आँखें बंद करो- देखो मेरी प्यारी बिटिया के लिए परी ने क्या भेजा है बचपन में दादी से परियों की कहानी सुन रखी थीं तो विश्वास हो गया कि सच में परी ने कुछ भेजा है | पिताजी ने कहा बोलो क्या चाहिए तुम्हें ? मेरे दिमाग़ में तो गुड़िया का भूत ही सवार था इसलिए मैंने कहा मुझे तो गुड़िया चाहिए | पिताजी ने कहा आँखे खोलो मैंने आँखें खोली तो देखा सुनहरे बालों वाली गुलाबी कपड़े पहने बड़ी सी एक गुड़िया मेरे हाथों में थी | मेरी ख़ुशी का ठिकाना न रहा और मैं झट से पिताजी से लिपट गई | आज भी वह घटना याद आती है तो आँखें नम हुए बिना नहीं रहतीं  | क्या पिता का प्यार ऐसा ही होता है !!

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6 comments:

  1. पितृ दिवस पर आदरणीय पिता जी के अपरिमित स्नेह को समर्पित आपका भावपूर्ण संस्मरण भाव विह्वल कर गया सविता जी ....सादर नमन मेरा !!

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  2. आदरणीय पापा जी की स्मृतियों से जुड़ी मेरी भावाभिव्यक्ति को यहाँ स्थान देने के लिए हृदय से आभार भैया जी !!

    सादर
    ज्योत्स्ना शर्मा

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  3. jyotsna ji aapke eak eak shabd mein pita ke prati aapke komal bhaav aise bhare badal hai jo pathak ko bhi ander tak bhigo gaye ...bheej gaie mai....apke sahaj ,saral ,nishkaam v khoobsurat bhaav hi pita ki mahanta tatha sneh ke saakshi hai ....dil se naman aise janak aur unki atmja ki bhaavnao ko.............jeevan darshan hai pita.......bahu ,bahut bhaavpurn aur sunder .
    savita ji,apka sansmaran padhte- padhte mujhe laga mai aapke saath saare drishy dekh rahi thi ....aur ant mein mai ro padi......sach hi to hai... pita ki bitiya ko pari ki bhi anubhuti pita ke karan hi sambhav hai ....lekin pita ke sneh ko samete rakhna...bus pyari beti hi karti hai ...ye mithaas pita ka diya prsaad hai...naman..apke pita ko v apki mishri si meethi bhaavnao ko....bahut hi khoobsurat..

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  4. पितृ दिवस पर बहुत भावुक संस्मरण. ज्योत्स्ना जी और सविता जी आप दोनों के लिए मंगलकामनाएँ!

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  5. jyotsna ji v savita ji ...aap log bahut pyare ho...ye aapki lekhni batati rahti hai ....itna pyaar ,sammaan, samarpan bhaav pyre logo ke hridya mein hi vaas karta hai ....atmik naman hai aapke pitr v pitr-sneh ko...aise pyari rachnaye padhvane ke liye ...aapka bahut bahut aabhaar.

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  6. बहुत मर्मस्पर्शी...अपनी यादों के साथ आप पाठको को भी उस समय में ले गयी...| ये आपकी सशक्त कलम का असर है...| शुभकामनाएँ...|

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