पथ के साथी

Tuesday, December 27, 2011

ओस की तरह


ओस की तरह (ताँका)
-रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’
1
हथेली छुए
तुम्हारे गोरे पाँव
नहा गया था
रोम-रोम पल में
गमक उठा मन।
2
समाती गई
साँसों में वो खुशबू
मिटे कलुष
तन बना चन्दन
मन  हुआ पावन।
3
तपी थी रेत
भरी दुपहर -सा
जीवन मिला
मिली छूने भर से
शीतल वह छाँव
4
आज मैं जाना-
मन जब पावन
खुशबू भरे
ये मलय पवन
ये तुम्हारे चरन।
-0-

6 comments:

  1. bahut sundar aur bhaavpurn abhivyakti...

    आज मैं जाना-
    मन जब पावन
    खुशबू भरे
    ये मलय पवन
    ये तुम्हारे चरन।

    shubhkaamnaayen.

    ReplyDelete
  2. वाह, अर्थ समेटे मनभावों का..

    ReplyDelete
  3. सुंदर अर्थ पूर्ण प्रस्तुती बेहतरीन क्षणिकाएं ,.....
    नववर्ष 2012 की हार्दिक शुभकामनाए..

    --"नये साल की खुशी मनाएं"--

    ReplyDelete
  4. Sundar abhivyakti shabdo ka jadu .... abhar kamboj ji

    ReplyDelete