पथ के साथी

Wednesday, July 23, 2008

दस नम्बरी दोहे

दस नम्बरी दोहे

 

रामेश्वर काम्बोज 'हिमांशु'

 

नेता  ऐसा चाहिए, डाकू तक घबराय ।

धुआँधार भाषण करे ,ले सबको बहकाय ॥

 

कुर्सी मधु से सौ गुनी,मादकता अधिकाय

वा पीकर बौराय जग ,या पाकर बौराय ॥

 

कुर्सी जननी ,ज़िन्दगी,सबकी इस तक दौर ।

इसके बिन संसार में ,और कहाँ पर ठौर ॥

 

बधिक आज नेता बने ,भरे हज़ारों खोट ।

जिस वोट से विजय मिली ,देते उसको चोट ॥

 

काले ब्रजबिहारी को पूज रहा संसार ।

काले धन को जोड़कर क्यों घबराते यार ॥

 

नेता खड़ा बज़ार में,जोड़े दोनों हाथ ।

जेब हमारी जो भरे ,चले हमारे साथ॥

 

जन-सेवा के नाम की झोंकी  ऐसी धूल ।

जनता झाँसे में फँसी, गई सभी कुछ भूल ।

 

जीवन कच्चा काँच है ,कर लो पक्का काम।

रिश्वत लेकर घर भरो,जपो हरि का नाम ॥

 

मिली  छूट माँ बाप से ,लूट मची दिन-रात ,

गाली देकर और को,खाओ खुद भी लात ॥

2 comments:

  1. सही दोहे हैं।
    घुघूती बासूती

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  2. आनन्द आ गया. आभार.

    कृपा वर्ड वेरिफिकेशन हटा लेवे.. टिप्पणी देने में सुविधा होगी.

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