पथ के साथी

Saturday, August 1, 2015

बिखरने न दे



1-मुक्तक डॉ ज्योत्स्ना शर्मा


-0-
2-दोहे -गुंजन अग्रवाल
1
हाथों में राखी लिये, आया सावन मास ।
परदेशी बहना हुई, भाई खड़ा उदास ।।
2
धरा प्रणय को देख कर, सावन झरता जाय ।
बिन साजन तरसे जिया, बरखा तन सुलगाय ।।
3
आँख -मिचौली खेलते, श्याम-सलोने मेह ।
सूखे ताल पुकारते, बरसा दो अब नेह ।।
4
चाँद हो गया लापता, तारक है द्युतिमान ।
झींगुर करते शोर है, दादुर गाते गान ।।
5
जलद फूँकते शंख है, इंद्र फेंकते तंत्र ।
रिमझिम करती आ गिरी, बूँदे पढ़ती मन्त्र ।।
6
प्रीत-पपीहा गा रहा, मीठे-मीठे राग ।
सावन के झूले पड़े, जली विरह की आग ।।
7
वर्षा की ऋतु आ गई, नाचे वन में मोर ।
छलक पड़े तालाब सब, दादुर करते शोर ।।
8
झूम उठी है वादियाँ, हँसी बिखेरे खेत ।
मेघ सुधा पीकर धरा, देखो हुई सचेत ।।
9
फिर आँगन में नाचती, बूँदों-संग उमंग ।
विरही मन प्यासा रहा, पिया न मेरे संग ।।
10
सावन लेकर आ गया, शुभ संदेसा आज ।
पैरों में थिरकन हुई, बूँद बनी है साज़ ।।
11
किसान सब बदहाल हैं, बिगड़े सब हालात ।
नैन लगाए टकटकी, बरसे कब बरसात ।।
-0-