पथ के साथी

Friday, June 1, 2012

खुशबू है आँगन की (माहिया)


 रामेश्वर काम्बोज 'हिमांशु'
1
मिलने की मज़बूरी
पास बहुत मन के
फिर कैसी है दूरी
2
बेटी धड़कन मन की
दीपक मन्दिर का
खुशबू है आँगन की
3
आँसू सब पी लेंगे
जो दु:ख तेरे हैं
उनको ले जी लेंगे
4
मन की तुम मूरत हो
जितने रूप मिले
उनकी तुम सूरत हो