पथ के साथी

Tuesday, December 20, 2011

काँच के घर ( ताँका)


छाया:हिमांशु

रामेश्वर काम्बोज हिमांशु
1
काँच के घर
बाहर सब देखे
भीतर है क्या
कुछ न दिखाई दे
न दर्द सुनाई दे ।


2
काँच के घर
काँपती थर-थर
चिड़िया सोचे-
हवा तक तरसे
जाऊ कैसे भीतर।
3
छाया: हिमांशु
बिछी है द्वार
बर्फ़ की ही चादर
काँच के जैसी
चलना सँभलके
गिरोगे फिसलके ।

5 comments:

  1. काँच के घर के माध्यम से गूढ़ तथ्य कह गयी पोस्ट!

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  2. बाहर अन्दर, बस काँच का झीना अन्तर..

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  3. गहन अभिव्यक्ति ... कांच के घर प्रकृति से दूर कर देते हैं

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  4. काँच का घर

    बहुत सुंदर, बेहद खूबसूरत !
    शुभकामनाएं !

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  5. काँच के घर
    बाहर सब देखे
    भीतर है क्या
    कुछ न दिखाई दे
    न दर्द सुनाई दे ।

    Bahut gahrai hai in paktiyon men ...ye aapke ghar ka photo hai na?

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