पथ के साथी

Saturday, October 8, 2011

सीमा स्मृति की कविताएँ


1  जिन्‍दगी

जिन्‍दगी होती जो गीत
   तो गुनागुना लेती मैं
बिना साजो के भी
   राग बना लेती मै
शब्‍दों का हाथ थाम
   भावों के संग चल देती मैं
 क्‍या जानती थी कि
   जिन्‍दगी सुरों का संगम नहीं
 जंग है ये परिस्थितियों की
 इसी लिए संघर्ष की ताल ले
जिन्‍दगी के कटु घरातल पर
 थिरका करती हूँ मैं ।

  2  ‘’शर्म’’

शर्म नहीं आती
बीस बरस की हो
और
अब भी गुब्बारे खरीद, खेलती हो ।
आती है शर्म
देख
उम्र है जिनकी खेलने की
वो
बेचा करते हैं गुब्‍बारे ।

 3   प्रवाह

नई मुलाकात ने
दी दस्‍तक
जीवन प्रवाह की
धारा तो बहती है
खामोश कहती है
थाम लो हाथ मुसाफिरों
मै
रुख बदलने को हूँ।
-0-

9 comments:

  1. सुन्दर कविताएं.....

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  2. कठिनाई में उत्साह बनाये रखना ही जीवन है।

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  3. सभी क्षणिकायों का शब्दों के साथ अद्भुत तालमेल .....

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  4. आपकी क्षणिकाएं इस बात को दर्शाती हैं कि प्रस्तुति का विषय भी अपना विशिष्ट स्थान रखता है । मेरे पोस्ट पर आकर मेरा भी मनोबल बढ़ाएं । धन्यवाद ।

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  5. क्‍या जानती थी कि
    जिन्‍दगी सुरों का संगम नहीं
    जंग है ये परिस्थितियों की.
    भावपूर्ण रचनायें।

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  6. bahut sunder rachnayen badhai........

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  7. कम शब्दों में रचा गया सम्पूर्ण कवित्त...लाजवाब

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  8. बहुत ही खुबसूरत रचना ......

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